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जो थे वही रहे / निदा फ़ाज़ली

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बदला न अपने-आपको

जो थे वही रहे

मिलते रहे सभी से

मगर अजनबी रहे |


अपनी तरह सभी को

किसी की तलाश थी

हम जिसके भी करीब रहे

दूर ही रहे |


दुनिया न जीत पाओ

तो हारो न आपको

थोड़ी-बहुत तो ज़हान में

नाराज़गी रहे |


गुज़रो जो बाग़ से

तो दुआ माँगते चलो

जिसमें खिले हैं फूल

वो डाली हरी रहे |


हर वक्त हर मुक़ाम पे

हँसना मुहाल है

रोने के वास्ते भी

कोई बेकली रहे |