भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिड़ियों ने पर्वत पर घोंसला बनाया / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:16, 25 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह |संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिड़ियों ने पर्वत पर घोंसला बनाया

दिन में रो रात-रात जी भर कर गाया


फिर पलाश फूले रंगते वन के छोर

रंग की लपट से छू जाती है कोर

आँखें भर आईं प्रिय मन यह भर आया


कोंपल के होंठों ने बाँसुरी बजाई

पिड़कुलियों ने सूनी दोपहर जगाई

पतझर ने आज कहाँ सोने मुझको दिया

तुड़े-मुड़े पत्तों ने खिड़की खटकाई

मन ने पिछले सपनों को फिर दुहराया