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चिड़ियों ने पर्वत पर घोंसला बनाया / ठाकुरप्रसाद सिंह

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चिड़ियों ने पर्वत पर घोंसला बनाया

दिन में रो रात-रात जी भर कर गाया


फिर पलाश फूले रंगते वन के छोर

रंग की लपट से छू जाती है कोर

आँखें भर आईं प्रिय मन यह भर आया


कोंपल के होंठों ने बाँसुरी बजाई

पिड़कुलियों ने सूनी दोपहर जगाई

पतझर ने आज कहाँ सोने मुझको दिया

तुड़े-मुड़े पत्तों ने खिड़की खटकाई

मन ने पिछले सपनों को फिर दुहराया