भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समझ मन समझाएगा कौन / शिवदीन राम जोशी
Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:48, 25 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | }} <poem> समझ मन समझाय...' के साथ नया पन्ना बनाया)
समझ मन समझायेगा कौन ।
पेड आम का लगे बिना ही फल खायेगा कौन।
सतगुरू संत ईसारा करते दूध से पानी न्यारा करते,
पुन्य उदय करते है साधू पाप ताप अघ धौन।
ये परतीत प्रेम मय रीती धन्य आतमा अमृत पीती,
प्रेम भक्ति बिन सब सुख फीका जस बिंजन बिन नौन।
मूल कल्पतरु है सतसंगत जैसे भाव रंगे सोही रंगत,
भगवत कृपा सुसंगत पावे और बात सब गौन।
आनन्द भरा सुख सत्य बात में दरसत है प्रभु पात-पात में,
कहे शिवदीन साधना सच्ची राम भजो रहि मौन।