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धान के ये फूल / ठाकुरप्रसाद सिंह
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धान के ये फूल
ये आनन्द के उपहार
ये कपासी फूल
तेरे नित्य के शृंगार
सोन रंगी फूल हुन्दी
सी जवानी खिली
जामुनी कोंपल सरीखी
देह चांदी झिली
फूल कद्दू के खिले
यह देह लहराई--
लहलहाती लता-सी
तुम गदबदा आई
कहाँ से पा गई प्रिय
ये अनछुए सब साज
और पीतल ठनकने
सी खनकती आवाज़ ?
कौन उत्सव आज