भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीखा कहाँ से रोना / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 25 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह |संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सीखा कहाँ से रोना


धर गाल हाथ पर तुम

आँसू बहा रहे हो

लगता हमें है ऎसा

तुम आदमी नहीं हो

भैंसों को आगे ठेलो

हल डोर उठो ले लो

फिर गूँजे स्वर तुम्हारा

हेलो लो हेलो हेलो

धरती तुम्हारी प्यारी

दे देगी तुम्हें सोना


सीखा कहाँ से रोना ?