भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोर पाँखें / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:31, 25 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह |संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोर पाँखें, मोर पाँखें, मोर पाँखें

दिशाओं की!


हर नगर

हर गाँव पर

आशीष सी

झुक गईं आके

मोर पाँखें!

दिशाओं की!


गाँव के गोइड़े

खड़ा जोगी,

झुलाता झूल वासन्ती

मोरछल से झाड़ता

मंत्रित गगन की धूल वासन्ती

खुल गईं लो

खुल गईं

कब की मुंदी आँखें

दिशाओं की