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कावड़िए / अशोक तिवारी

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कावड़िए

आया आया
फिर से आया
कावड़ियों का मौसम आया
खड़े हो जाओ रास्ता छोड़कर
आ न जाओ कहीं तुम बीच में
और हो जाओ कहीं
एक और अयोध्या या गोधरा के शिकार

अब किसी बलात्कारी को भी
नहीं पकड़ पाएगी पुलिस
तस्करी में फँसे हुए लोगों का
नहीं ले पाएगी कोई सुराग
और किसी भी अवमानना के लिए
नहीं होगी वो ज़िम्मेवार
क्योंकि वो जुटी है अब
सरकारी ड्यूटी पर
जुटी है उन सबकी मेहमानी पर
थे कल तक जो ब्लैक लिस्ट में
स्पेशल व्यवस्था बनाई जा रही है
जगह-जगह
उनके आराम के लिए
ताकि भरे जा सकें कुछ हद तक
कावड़ से छिले उनके कंधों के घाव

आख़िरकार वो ढोकर ला रहे हैं कावड़
कोसों पैदल
कर रहे हैं वो
एक राष्ट्रवादी काम
ऐसा काम जिसे आयोजित करते हैं
देख के संवैधानिक सदन के
संवैधानिक सदस्य
असंवैधानिकता के लिए
और करते हैं विदा
कावड़ियों के समूह के समूह
इस तरह
जा रहे हों जैसे वो
देश की सीमा पर लड़ने और शहीद होने
अपने जुनून में
अपने नशे में

शिव के नए अवतार
नए संस्करण में
अपनी जटाओं में
धारण किए हुए गंगा
निकल पड़े हैं संस्कृति के रक्षार्थ
आस्था के कपोल कल्पित संसार के लिए

बिखेरे जा रहे हैं जो बीज
उगेंगे अपने नए संस्करण के साथ
मज़बूती से कल
जब इसी दुनिया को मान लिया जाएगा
सबसे प्रमाणिक इतिहास

आस्था का सवाल
आमजनों की रोज़मर्रा की
ज़िंदगी से जुड़ जाता है जब
बन जाता है सबसे ज़्यादा ख़तरनाक तब
और इस्तेमाल कर सकते हैं आप
मासूम से मासूम चेहरों को
अपने किसी भी मक़सद के लिए

आज जब छटे हुए बदमाशों
और नशेड़ियों की पूरी बिरादरी भी
बनाए हुए है
अपने कंधों पर
कावड़ के दोनों पल्लों का बेलेंस
रखी होती हैं जिनमें
छोटी-छोटी शीशियां
गंगाजल से भरी हुई
नफ़रत के संकल्प में डूबी
हम भूल रहे हैं गंगा की संस्कृति का
मूल अध्याय
जो एक नदी है
जो तोड़ने नहीं, जोड़ने की हिमायत करती है

इससे पहले कि वो आकर
उघाड़ें तुम्हारा बदन
और दे दें पूरा प्रमाण अपने शिवभक्त होने का तुम्हें
रफ़ा-दफ़ा हो जाओ भाई इन रास्तों से
चिन्हित कर दिए गए हैं जो उनके लिए
और सिर्फ़ 'उनके' लिए
इंतज़ार करो
उनके गुज़र जाने का
..................

30.10.2008