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ख़्वाब : तीन / सुधीर सक्सेना
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(गुलज़ार साहब का गीत सुनने के बाद)
बूँदें झर रही हैं
मगर क्यों है इतनी बेसुवादी-बेसुवादी रात ?
धरती पर
अभी भी बचा है स्वाद
ख़्वाब देखो तो कोई बात बने ।