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जागौ, जागौ हो गोपाल / सूरदास

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जागौ, जागौ हो गोपाल ।
नाहिन इतौ सोइयत सुनि सुत, प्रात परम सुचि काल ॥
फिरि-फिरि जात निरखि मुख छिन-छिन, सब गोपनि बाल ।
बिन बिकसे कल कमल-कोष तैं मनु मधुपनि की माल ॥
जो तुम मोहि न पत्याहु सूर-प्रभु, सुन्दर स्याम तमाल ।
तौ तुमहीं देखौ आपुन तजि निद्रा नैन बिसाल ॥

सूरदासजी कहते हैंकि (मैया मोहनको जगा रही हैं-)`जागो ! जागो गोपाललाल ! प्यारेपुत्र ! सुनो, सबेरेका समय बड़ा पवित्र होता है, इतने समय तक सोया नहीं जाता । क्षण-क्षणमें (बार-बार) तुम्हारे मुखको देखकर सभी ग्वाल-बाल लौट-लौट जाते हैं (तुम्हारे सब सखा जाग गये हैं )। ऐसा लगता है जैसे बिना खिले सुन्दर कमल-कोष से भौंरों की पंक्ति लौट लौट जाती हो । तमालके समान श्याम वर्णवाले मेरे सुन्दर लाल! यदि तुम मेरा विश्वास न करते हो तो नींद छोड़कर अपने बड़े-बड़े नेत्रौंसे स्वयं तुम्हीं (इस अद्भुत बातको) देख लो ।'