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आँधी / लीलाधर जगूड़ी
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रात वह हवा चली जिसे आँधी कहते हैं
उसने कुछ दरवाजे भड़भड़ाए
कुछ खिड़कियाँ झकझोरीं, कुछ पेड़ गिराए
कुछ जानवरों और पक्षियों को आकुल-व्याकुल किया
रात जानवरों ने बहुतसे जानवर खो दिए
पक्षियों ने बहुत-से पक्षी
जब कोई आदमी नहीं मिले
तब उसने खेतों में खड़े बिजूके गिरा दिए
काँटेदार तारों पर टँगे मिले हैं सारे बिजूके
आदमियो! सावधान
कल घरों के भीतर से उठनेवाली है कोई आँधी