भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई / ज़फ़र गोरखपुरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:36, 19 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = ज़फ़र गोरखपुरी }} {{KKCatGhazal}} <poem> मेरे ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई
मैं जो मरा तो मर जाएगी तन्हाई
मैं जब रो रो के दरिया बन जाऊँगा
उस दिन पार उतर जाएगी तन्हाई
तन्हाई को घर से रुख़्सत कर तो दो
सोचो किस के घर जाएगी तन्हाई
वीराना हूँ आबादी से आया हूँ
देखेगी तो डर जाएगी तन्हाई
यूँ आओ कि पावों की भी आवाज़ न हो
शोर हुआ तो मर जाएगी तन्हाई