Last modified on 20 फ़रवरी 2012, at 08:45

ग़द्दारे-क़ौम और वतन / सीमाब अकबराबादी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:45, 20 फ़रवरी 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
किया था जम’अ जाँबाज़ों ने जिसको जाँ-फ़रोशी से
रुपहले चन्द टुकडों पर वो इज़्ज़त बेच दी तूने

कोई तुझ-सा भी बे-ग़ैरत ज़माने में कहाँ होगा?
भरे बाज़ार में तक़दीरे-मिल्लत बेच दी तूने