भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कभी हरा रंग बहुत खुश था / येहूदा आमिखाई
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:30, 21 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=येहूदा आमिखाई |संग्रह= }} [[Category:यहू...' के साथ नया पन्ना बनाया)
|
मेरे पास बहुत सारे मृतक हैं
हवा में दफनाए हुए
मेरे पास जीवन से वियुक्त एक माँ है
कुल मिलकर
मैं खुद जीवित हूँ अभी तक
मैं 'जगह' की तरह हूँ
लड़ता हुआ 'समय के खिलाफ'
खिड़की पर तुम्हारे चेहरे के पीछे
कभी हरा रंग बहुत खुश था
सिर्फ मेरे सपनों में मैं अभी तक करता हूँ प्रेम
पूरी ताक़त के साथ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : निशान्त कौशिक