हौं इक नई बात सुनि आई / सूरदास
राग रामकली
हौं इक नई बात सुनि आई ।
महरि जसौदा ढौटा जायौ, घर घर होति बधाई ॥
द्वारैं भीर गोप-गोपिनि की, महिमा बरनि न जाई ।
अति आनन्द होत गोकुल मैं, रतन भूमि सब छाई ॥
नाचत बृद्ध, तरुन अरु बालक, गोरस-कीच मचाई ।
सूरदास स्वामी सुख-सागर, सुंदर स्याम कन्हाई ॥
भावार्थ :--
(कोई गोपिका कहती है-) मैं एक नवीन समाचार सुन आयी हूँ--`व्रजरानी श्रीयशोदाजीके
पुत्र उत्पन्न हुआ है, घर-घरमें बधाई (मंगलगान) हो रही है । (व्रजराज के) द्वारपर
गोप-गोपियों की भीड़ लगी है । आज के उनके महत्त्व का वर्णन नहीं हो सकता । गोकुल
में अत्यन्त आनंद मनाया जा रहा है (वहाँ की ) सारी पृथ्वी रत्नों से ढक गयी है ।
सभी वृद्ध, तरुण और बालक नाच रहे हैं । (उन्होंने) गोरस (दूध, दही, माखन) का
कीचड़ मचा रखा है ।'सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी श्यामसुन्दर कन्हाई सुख के
समुद्र हैं । (इनके गोकुल आने से वहाँ आनन्द-महोत्सव तो होगा ही ।)