भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पलना स्याम झुलावती जननी / सूरदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:44, 25 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग कान्हरौ पलना स्याम झुलावती जननी।<br> अति ...)
राग कान्हरौ
पलना स्याम झुलावती जननी।
अति अनुराग पुरस्सर गावति, प्रफुलित मगन होति नँद-घरनी ॥
उमँगि-उमँगि प्रभु भुजा पसारत, हरषि जसोमति अंकम भरनी ।
सूरदास प्रभु मुदित जसोदा, पुरन भई पुरातन करनी ॥
माता श्यामसुन्दरको पलनेमें झुला रही हैं ।अत्यन्त प्रेमवश वे नन्दपत्नी गाती जाती हैं, वे आनन्द से प्रफुल्लित हैं, मन-ही-मन प्रसन्न हो रही हैं । बार-बारउल्लसित होकर प्रभु भुजाएँ फैलाते हैं और श्रीयशोदाजी हर्षित होकर उन्हें गोदमें उठा लेती हैं । सूरदासजी कहते हैं--श्रीयशोदाजी आनन्दित हो रही हैं । उनके पूर्वकृत पुण्यफल पूर्णतः सफल हो गये हैं ।