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धीरे-धीरे बोलो / नागेश पांडेय 'संजय'
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कितनी जल्दी बोल रहे हो?
सुस्ताकर मुंह खोलो।
धीरे-धीरे बोलो, भैया
धीरे-धीरे बोलो।
शब्द तुम्हारे करते
गुत्थम-गुत्थी, धक्कम-पेल,
बोला करते ऐसे
जैसे-भाग रही हो रेल।
स्वर को अमर बनाने का गुण
अपने स्वर में घोलो
‘पानी लाओ को कहते हो
‘पा’ लाओ’, क्या लाऊं!
बात तुम्हारी कैसे समझूं?
कैसे अर्थ लगाऊं?
बात तुम्हारी सुन, मन कहता-
आं आं ऊं ऊं रो लो।
जल्दी जो बोला करते हैं
उनसे सब कतराते,
बहुत अधिक धीरे जो बोलें,
समय व्यर्थ खा जाते।
एक सन्तुलित गति अपनाओ,
भाषा अपनी तोलो।
धीरे बोलो, अच्छा बोलो,
मीठा बोलो-ठानो,
जो बोलो वह समझे दूजा,
वाणी अपनी छानो।
अपनी बोली के बलबूते
सबके उर में डोलो।
धीरे-धीरे बोलो।