भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेन्टिंग पर तितली / सुशीला पुरी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:01, 24 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला पुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> पे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पेन्टिंग पर तितली

( ये कविता पुस्तक-मेले के एक स्टाल पर हुसैन की पेन्टिंग पर बैठी एक जिंदा तितली देखकर लिखी गई ...)

वो तितली उड़ सकती थी
मेले में स्वछंद ...
शब्दों को मुट्ठी में भरकर
किताबों की सुगंध पीते हुये
अर्थों की दुनियाँ के पार

वो उड़ सकती थी
नीले खुले आसमान में
बादलों के पार
बूँदों से आँख -मिचौनी खेलते हुए
पृथ्वी को नहलाते हुए
अपने अनगिन रंगों की बारिश में

वो उड़ सकती थी
दूर...बहुत दूर
नदी की लहरों सी चंचल
समंदर के सीने पर
चित्र बनाते हुए खिलखिलाते हुए

पहुँच सकती थी वो
रंगों का सूत्र लिए
रंगों के गाँव
रंगों के नुस्खों से पूछ सकती थी
हंसी और आँसू का हाल

पर ,बेसुध विमुग्ध वह
हुसैन के श्वेत -श्याम चित्र पर
लिए जा रही थी
चुंबन ही चुंबन
चुंबन ही चुंबन !