सुत-मुख देखि जसोदा फूली / सूरदास
सुत-मुख देखि जसोदा फूली
सूरदास श्रीकृष्णबाल-माधुरी
सुत-मुख देखि जसोदा फूली ।
हरषित देखि दूध की दँतियाँ, प्रेममगन तन की सुधि भूली ॥
बाहिर तैं तब नंद बुलाए, देखौ धौं सुंदर सुखदाई ।
तनक-तनक-सी दूध-दँतुलिया, देखौ, नैन सफल करौ आई ॥
आनँद सहित महर तब आए, मुख चितवत दोउ नैन अघाई ।
सूर स्याम किलकत द्विज देख्यौ, मनौ कमल पर बिज्जु जमाई ॥
और बार-बार बालकका मुख देखती हैं । श्याम ओठ फड़काकर तनिक हँस पड़े, इस शोभाकी उपमा भला कौन जान सकता है । माता झुलाती है और `प्यारे लाल !' कह-कहकर गाती है ।माता झुलाती है और `प्यारे लाल!' कह-कहकर गाती है । श्यामसुन्दरकी शिशु अवस्थाकी लीलाएँ अपार है । व्रजरानी उनका श्रीमुख देखकर हृदयमें उल्लसित हो रही हैं । सूरदासजी कहते हैं-ये मेरे स्वामी (जो शिशु बने हैं) साक्षात शार्ङ्गपाणि नारायण हैं ।