Last modified on 27 फ़रवरी 2012, at 19:50

अब खुले आँख-कान रहने दो / ओमप्रकाश यती

Omprakash yati (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:50, 27 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{kkGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = ओमप्रकाश यती |संग्रह= }} {{KKcatGhazal}} <poem> अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँचा:KkGlobal

साँचा:KKcatGhazal


अब खुले आँख-कान रहने दो
मुल्क को सावधान रहने दो

पाँव रक्खो ज़मीन पर लेकिन
ख़्वाब में आसमान रहने दो

चैन से लोग हैं यहाँ अब तो
अपने तीखे बयान रहने दो

तुम इन्हें अनसुना भले कर दो
इनके मुँह में ज़ुबान रहने दो

कल की बातों में कुछ नहीं रक्खा
सोच में वर्तमान रहने दो

शाइरी खुद बताएगी सब कुछ
आप अपना बखान रहने दो