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धनि जसुमति बड़भागिनी, लिए कान्ह खिलावै / सूरदास

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राग सूहौ बिलावल


धनि जसुमति बड़भागिनी, लिए कान्ह खिलावै ।
तनक-तनक भुज पकरि कै, ठाढ़ौ होन सिखावै ॥
लरखतरात गिरि परत हैं, चलि घुटुरुनि धावैं ।
पुनि क्रम-क्रम भुज टेकि कै, पग द्वैक चलावैं ॥
अपने पाइनि कबहिं लौं, मोहिं देखन धावै ।
सूरदास जसुमति इहै बिधि सौं जु मनावै ॥

भावार्थ :--महाभाग्यवती यशोदाजी धन्य हैं, वे कन्हाई गोद में लिये खेला रही है । उनकी छोटी-छोटी भुजाएँ पकड़कर खड़ा होना सिखलाती हैं । वे लड़खड़ाते हैं और गिर पड़ते हैं, फिर घुटनों के बल सरकते चल पड़ते हैं, फिर माता धीरे-धीरे हाथों को पकड़े हुए सहारा देकर दो-एक पग चलाती हैं । सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा जी इसी प्रकार से (देव से) मनाती हैं कि `कब तक अपने पैरों चलकर मेरा लाल मुझे देखने दौड़कर आने लगेगा ।'