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उजियारा भटक रहा / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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उजियारा भटक रहा

जहाँ गया वहीं मिले
बहके उपदेश
उजियारा भटक रहा
अपने ही देश

प्रतिभाएँ मोल बिकीं
कौड़ी की तीन,
आँखों पर दौलत के
चश्में रंगीन
गंगा तक श्याम हुई
बदला परिवेश

झूठों को मानपत्र
सच्चों की जाँच
नियमों को निगल गयी
रिश्वत की आँच
वादे परिवर्तन के
थोथे निर्देश

यहाँ वहाँ घूम रहे
बादल मुँहजोर
प्यास लिये गाँव चले
शहरों की ओर
चन्दन की पाटी पर
दहके सन्देश
उजियारा भटक रहा
अपने ही देश