धड़कनों के बीच कस्तूरी लिए / राजेश शर्मा
धड़कनों के बीच कस्तूरी लिए ,
प्रश्न ये है गंध को कैसे जियें ,
अब किसी आनंद को कैसे जियें,
ज़िन्दगी ने सीखलीं भरना कुलांचें,
मान नहीं करता कि अब इतिहास बाँचें.
घुंघरुओं में बांधकर चरों दिशाएँ ,
हम बिना सुर-ताल के निर्बाध नाचें.
जब अकेले ही विचारने हृदय हो,
झुण्ड के अनुबंध को कैसे जियें.
एक भटके लक्ष्य पर,सौ-सौ शिकारी,
हर शिकारी की हवाओं पर सवारी.
जब नहीं हो पेड़- पौधा शेष कोई,
तब बचेगी ज़िन्दगी कैसे हमारी.
फूल ओढ़े आवरण पर आवरण हैं ,
प्रस्फुटित मकरंद को कैसे जियें.
हम नहीं हें सिर्फ, इकलौते अभागे,
जो बहारों के शिखर से कूद भागे.
और भी हैं , बंधुवर, मेरे तुम्हारे ,
जो रहे हैं दौड़ में हरबार आगे.
रास्ते पहुचे कसैली खाइयों में ,
चिर-रसीले छंद को कैसे जियें