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आज कुछ लिख रहा हूँ / विवेक तिवारी

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आज कुछ लिख रहा हूँ
प्रेम की किसी
बहुत गहरी भावना से वशीभूत होकर

क्या ये प्रेम की पहली कविता है ?
या मेरी जलन का कोई रहस्य ?

आज मुझे दिखती हैं
नदी में ख़ामोश तरंगें
घाटों का सूनापन
मेलों में बिखरी शान्ति
भीड़ों का अकेलापन

पर मेरी इस उदासी से
बहुत खुश है
इस आकाश का चांद

क्योंकि चला जाता है वो
सैकड़ो नदियों,झीलों,झरनों
पर्वतो और नगरों को
पार करते हुए
तुम्हारी छत तक

और बढ़ाकर मेरी बेचैनी
ताकता रहता है तुमको
आहिस्ता-आहिस्ता

और फिर लगता है
तुम्हें और चांद को छोड़कर
सिर्फ मैं ही नहीं
बल्कि ये पूरी सदी उदास है।