भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच में कितना ख़ूबसूरत है / विवेक तिवारी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:28, 22 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विवेक तिवारी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> सच ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सच में
कितना ख़ूबसूरत है
तुम्हारा नाम
कभी किसी उलझन में
मैं उसे लिखूँ न लिखूँ
पर फूलों में
रंगों में
खुशबू में
सिहरन में
हवाओं के झोंके
तो उसे लिख ही जाते हैं ।