भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेर-2 / अज़ीज़ लखनवी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:51, 22 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अज़ीज़ लखनवी }} Category: शेर <poem> (1) इतना ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(1)
इतना तो सोच जालिम जौरो-जफा1 से पहले,
यह रस्म दोस्ती की दुनिया से उठ जायेगी।
(2)
उनको सोते हुए देखा था दमे-सुबह2 कभी,
क्या बताऊं जो इन आंखों ने समां देखा था।
(3)
एक मजबूर की तमन्ना क्या,
रोज जीती है, रोज मरती है।
(4)
कफन बांधे हुए सर से आये हैं वर्ना,
हम और आप से इस तरह गुफ्तगू करते।
(5)
जवाब हजरते3-नासेह4 को हम भी कुछ देते
जो गुफ्तगू के तरीके से गुफ्तगू करते।
1.जौरो-जफा - अत्याचार, अन्याय, जुल्मो-सितम 2. दमे-सुबह - सुबह के वक्त 3. हजरत - किसी बड़े व्यक्ति के नाम से पहले सम्मानार्थ लगाया जाने वाला शब्द 4. नासेह - नसीहत करने वाला, सदुपदेशक