भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जी रहे है बाबा / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:28, 25 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=होना चाहता ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


किसी भी कीमत पर
नहीं छोड़ूंगा गाँव
फूट-फूट कर रोए थे बाबा
गाँव छोड़ते वक्त।

सचमुच नहीं छोड़ा गाँव
एक पल के लिए भी
भले ही समझाइश के बाद
मणेरा से पहुँच गए मुंबई
मगर केवल तन से
बाबा का मन तो
आज भी
भटक रहा है
गांव की गुवाड़ में।

बीते पच्चीस वर्षों से
मुंबई में
मणेरा को ही
जी रहे है बाबा।