इस सन्नाटे भरी
रात में
न जाने
कहाँ से
छटाक से कोई
पत्थर मेरी
खिड़की पर
फैंकता है
और किरच -किरच
हुआ अतीत
मेरे आंगन मे
बिखर जाता है ...!
इस सन्नाटे भरी
रात में
न जाने
कहाँ से
छटाक से कोई
पत्थर मेरी
खिड़की पर
फैंकता है
और किरच -किरच
हुआ अतीत
मेरे आंगन मे
बिखर जाता है ...!