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अतीत के छींटे / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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इस सन्नाटे भरी
रात में
न जाने
कहाँ से
छटाक से कोई
पत्थर मेरी
खिड़की पर
फैंकता है
और किरच -किरच
हुआ अतीत
मेरे आंगन मे
बिखर जाता है ...!