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पीडा / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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अभी भी कोई
मेरी टहनियो
को भीतर से
गिलहरियो की
तरह
कुटकुटाता है ..
टटहरी की तरह
कोई खाता रहता है
अंदर ही अंदर ....
रेत देता है
रोज मेरा पोर पोर ...
सदियो से पिरा
जखम
अंदर ही अंदर
रिस्ता है .....
बहुत सम्भाला
बहुत ढका
पर फिर भी
उधड उधड
जाता है