बातनिहीं सुत लाइ लियौ / सूरदास
बातनिहीं सुत लाइ लियौ ।
तब लौं मधि दधि जननि जसोदा, माखन करि हरि हाथ दियौ ॥
लै-लै अधर परस करि जेंवत, देखत फूल्यौ मात-हियौ ।
आपुहिं खात प्रसंसत आपुहिं, माखन-रोटी बहुत प्रियौ ॥
जो प्रभु सिव-सनकादिक दुर्लभ, सुत हित जसुमति-नंद कियौ ।
यह सुख निरखत सूरज प्रभु कौ, धन्य-धन्य पल सुफल जियौ ॥
भावार्थ :-- यशोदाने अपने पुत्रको बातेंमें लगा लिया और तबतक दही मथकर मक्खनश्यामके हाथपर रख दिया । मोहन (थोड़ा-थोड़ा माखन) ले-लेकर होठसे छुलाकरखा रहे हैं, यह देखकर माताका हृदय प्रफुल्लित हो गया है, स्वयं ही खाते हैं और स्वयं ही प्रशंसा करते हैं, मक्खन-रोटी इन्हें बहुत प्रिय है । जो प्रभु शिव और सनकादि ऋषियोंको भी दुर्लभ हैं, उन्हें पुत्र बनाकर यशोदाजी और नन्दबाबा उनसे(वात्सल्य) प्रेम कर रहे हैं । अपने स्वामीका यह आनन्द देखकर सूरदास इस क्षणको परम धन्य मानता है, जीवनका यही सुफल है (कि श्यामकी बाल-लीलाके दर्शन हों)।