भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंगाली बाबा (6) / पुष्पेन्द्र फाल्गुन
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:36, 25 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पेन्द्र फाल्गुन |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
उस दिन से
नहीं सुनी किसी ने
जोगनी की आवाज़
उस अँधेरे-छोटे कमरे में जब
कोई नोचता है उसकी देह
तो जोगनी
सामने की दीवार पर टंगी
बाबा की तस्वीर में खो जाती है
बरसों पुरानी फ्रेम से घिरे बाबा
जाने कब से बीड़ी फूंक रहे हैं उस तस्वीर में