भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुई सुबह / पुष्पेन्द्र फाल्गुन
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:37, 25 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पेन्द्र फाल्गुन |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एक लड़की हंसती है
बस की खिड़की से बाहर देखती हुई
तो
छँटने लगती है कालिमा शहर की
दूर कहीं से घनघनाता भोंपू
उछाल देता है सूर्य को आकाश में