भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुडिय़ा (4) / उर्मिला शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


उसने किया है फैसला
कि नहींबानएगी अब
कोई गुडिय़ा
वह तो बनाएगी एक चिडिय़ा
जो नाप सके
सारा आकाश
आंखो में उतरती
निलिमा के बीच
उगने लगे बाज
क्षण भर को
थरथरा उठी उंगलियां
फिर भी वह बना रही है चिडिय़ा
जिसे लडऩा है
बाजों और बहलियों से।