भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ तुझे प्रणाम / सरस्वती माथुर

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:31, 27 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरस्वती माथुर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> म...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मृदुल थपकियाँ देकर सुलाती
मधुर स्वर में लोरी गाती
हाथों के झूलों पर जो
दिन रात शिशु को झुलाती
वही नारी वही नारी हाँ
वही नारी तो माँ कहलाती
संस्कारों की खनि से निकाल
जो शिशु को रत्न बनाती हाँ
वही नारी वही नारी हाँ
वही नारी तो माँ कहलाती
धन्य है माँ के प्रयास
बच्चों को देती अहसास
मधुसरिता-सी खुद बह कर
बच्चों में प्रेम रस बरसाती
वही नारी वही नारी हाँ
वही नारी तो माँ कहलाती

आओ आज मातृ दिवस पर
हाथ जोड़ कर अंतरमन से
इस पुनीत अवसर पर
हम उस माँ को शत शत
प्रणाम करें!

मन की वीणा के तार छेड़
उसकी महिमा का
हम गुणगान करें।