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ऐसौ हठी बाल गोविन्दा / सूरदास

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राग रामकली

(मेरी माई) ऐसौ हठी बाल गोविन्दा ।
अपने कर गहि गगन बतावत, खेलन कौं माँगै चंदा ॥
बासन मैं जल धर्‌यौ जसोदा, हरि कौं आनि दिखावै ।
रुदन करत, ढूँढ़त नहिं पावत, चंद धरनि क्यों आवै !
मधु-मेवा-पकवान-मिठाई, माँगि लेहु मेरे छौना ।
चकई-डोरि पाट के लटकन, लेहु मेरे लाल खिलौना ॥
संत-उबारन, असुर-सँहारन, दूरि करन दुख-दंदा ।
सूरदास बलि गई जसोदा, उपज्यौ कंस-निकंदा ॥

भावार्थ :-- (यशोदा जी कहती हैं) `सखी ! मेरा यह बालगोविन्द ऐसा हठी है (कि कुछ न पूछो) । अपने हाथ से मेरा हाथ पकड़कर आकाश की ओर दिखाता है और खेलने के लिये चन्द्रमा माँगता है ।'यशोदा जी ने बर्तन में जल भरकर रख दिया है और हरि को लाकर उसमें (चन्द्रमा) दिखलाती हैं । लेकिन श्याम ढूँढ़ते हैं तो चन्द्रमा मिलता नहीं, इससे रो रहे हैं । भला, चन्द्रमा पृथ्वी पर कैसे आ सकता है । (माता कहती हैं) `मेरे लाल ! तुम मधु, पकवान, मिठाई आदि (जो जी में आये) माँग लो; मेरे दुलारे लाल! चकडोर, रेशम के झुमके तथा अन्य खिलौने ले लो ।' सूरदास जी कहते हैं कि संतों का उद्धार करने वाले, सबके समस्त दुःख-द्वन्द्व को दूर करने वाले (मचलते) श्याम पर, जो कंस का विनाश करने अवतरित हुए हैं, (मनाती हुई) मैया यशोदा बार-बार न्योछावर हो रही हैं ।