मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं / सूरदास
राग केदारौ
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं ।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं ॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं ।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को , तेरौ सुत न कहैहौं ॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं ।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं ॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं ॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं ॥
भावार्थ :-- (श्यामसुन्दर कह रहे हैं) `मैया! मैं तो यह चंद्रमा-खिलौना लूँगा (यदि तू इसे नहीं देगी तो ) अभी पृथ्वीपर लोट जाऊँगा, तेरी गोदमें नहीं आऊँगा ।न तो गैयाका दूध पीऊँगा, न सिरमें चुटिया गुँथवाऊँगा । मैं अपने नन्दबाबाका पुत्र बनूँगा, तेरा बेटा नहीं कहलाऊँगा ।' तब यशोदा हँसती हुई समझाती हैं और कहती हैं-`आगे आओ ! मेरी बात सुनो, यह बात तुम्हारे दाऊ भैयाको मैं नहीं बताऊँगी ।तुम्हें मैं नयी पत्नी दूँगी ।' (यह सुनकर श्याम कहने लगे-) ` तू मेरी मैया है, तेरी शपथ- सुन ! मैं इसी समय ब्याह करने जाऊँगा।' सूरदासजी कहते हैं--प्रभो! मैं आपका कुटिल बाराती (बारातमें व्यंग करनेवाला) बनूँगा और (आपके विवाहमें) मंगल केसुन्दर गीत गाऊँगा ।