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छोटा सा उसका कद / कुमार अनिल
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छोटा सा उसका कद है
पर बाहर से बरगद है
रोज बहस सी होती है
मेरे अन्दर संसद है
मन में घुंघरू बजते हैं
जाने किसकी आमद है
कोई पार करे इसको
मन ये मेरा सरहद है
कोई परिंदा तो आए
कब से सूना गुम्बद है
रोज डराता है मुझको
मेरा मन ही शायद है