भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो इस जहाँ का खुदा है / कुमार अनिल

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:05, 2 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अनिल |संग्रह= }} {{KKAnthologyDeath}} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


वो इस जहाँ का खुदा है, मुगालता है उसे
हैं सब बुरे वो भला है, मुगालता है उसे

उछालता है वो कीचड़ लिबास पर सबके
और खुद दूध धुला है, मुगालता है उसे

नजर के सामने इक चीज जो चमकती है
फलक पे चाँद खिला है, मुगालता है उसे

गई है कान में सरगोशियाँ सी करके हवा
कुछ उससे मैंने कहा है, मुगालता है उसे

चमकती रेत में डाली जरूर है उँगली
पर उसका नाम लिखा है, मुगालता है उसे

है कुछ मुक्तक कुछ में जलता बुझता हुआ
किसी सूरज का सगा है, मुगालता है उसे