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स्त्री न हो तो / नासिर अहमद सिकंदर

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स्त्री न हो तो
घर न चले
पल भर
न हो स्त्री
तो खाना ताजा तो दूर
चाय तक न मिले गरम
बच्चे सज-धज न जा पायें स्कूल
बर्तन धरे रह जायें जूठे
कपड़े
मैले के मैले
बाहर की उड़ती धूल
जमती जाये
परत-दर-परत
घरों में
किसी ने फिकरा कसा अच्छा
प्रधानमंत्री न हो तो
चल सकता है देश
पर स्त्री न हो तो. . . . . .
न चले घर
पल भर !