भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झूलने वाली कुर्सी / दुन्या मिखाईल

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:46, 12 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=दुन्या मिखाईल |संग्रह= }} [[Category:अर...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: दुन्या मिखाईल  » झूलने वाली कुर्सी



जब वे आए,
बड़ी माँ वहीं थीं
झूलने वाली कुर्सी पर.
तीस साल तक
झूलती रहीं वे...
अब
मौत ने मांग लिया उनका हाथ,
चली गयीं वे
बिना एक भी लफ्ज़ बोले,
अकेला
छोड़कर इस कुर्सी को
झूलते हुए.


अनुवाद : मनोज पटेल