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उम्मीद मूल कुमाउनी कविता / नवीन जोशी ’नवेंदु’

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उम्मीद (मूल कुमाउनी कविता)

एक दिन
इका्र सांस लै ला्गि सकूं
ना्ड़ि लै हरै सकें,
दिन छनै-
का्इ रात !
कब्बै न सकीणीं
का्इ रात लै
है सकें।

छ्यूल निमणि सकनीं
जून जै सकें,
भितेरौ्क भितेरै •
गोठा्ैक गोठै •
भकारौ्क भकारूनै
सा्रौक सा्रै
उजड़ि सकूं।

सा्रि दुनीं रुकि सकें
ज्यूनि निमड़ि सकें
ज्यान लै जै सकें।

पर एक चीज
जो कदिनै लै
न निमड़णि चैंनि
जो रूंण चैं
हमेशा जिंदि
उ छू- उमींद
किलैकी-
जतू सांचि छु
रात हुंण
उतुकै सांचि छु
रात ब्यांण लै।