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पहचान हिन्दी भावानुवाद / नवीन जोशी ’नवेंदु’

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 पहचान (हिन्दी भावानुवाद)

मेहल के पेड़ में
नाशपाती (कलम कर के लगाई हुई)
आड़ूं के पेड़ में खुमानी
गुलाब की टहनी में
नऐ-नौ रंगों के फूल
महिलाओं के शरीर में पुरुषों
और पुरुषों के शरीर में
महिलाओं के कपड़े/फैशन।

धर्म भ्रष्ट लोग
क्या है किसकी असलियत
क्या है किसकी पहचान
कौन जाने ?
वह खुद भी नहीं जानते
बस लगे हैं जोड़-तोड़ में
घिरे हुऐ हैं बाल-बच्चों में
पता ही नहीं है, कहां जा रहे हैं...
क्यों जा रहे हैं।
फिक्र में हैं
जल्दी पहुचने को
दूसरों को धोखा देने को !
पता ही नहीं है
किसे दे रहे हैं वास्तव में धोखा ?

पहचान/हस्ती
कितनी सस्ती ?
कपड़े-जूते, दाढ़ी-मूंछ-बाल
बदलकर,
बदल जा रही है पूरी
विकास ?
दूसरों का अधूरा ही सही अंधानुकरण करना
पाताल जाना-और आकाश की ओर देखना
असलियत ?
नहीं थे जब कपड़े
या कि पैदा होते वक्त
जैसे थे नग्न
अब कपड़े होते हुऐ भी
हो रहे हैं नग्न
क्या यही है हमारी
पहचान ?
हमारा विकास ?
क्या बचा है
हम में हमारा (शिनाख्त को) चिन्ह।