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फैली मुस्कान-हाइकु / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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21 फैली मुस्कान शिशु की दूधिया या हुआ विहान । 22 सर्दी की धूप उतरी आँगन में ले शिशु -रूप 23 खिलखिलाई पहाड़ी नदी-जैसी मेरी मुनिया । 24 खुशबू- भरी हर पगडण्डी -सी नन्हीं दुनिया । 25 तुतली बोली आरती में किसी ने मिसरी घोली । 26 इस धरा का सर्वोच्च सिंहासन है बचपन 27 मन्दिर में न राम बसा है ,बसा भोले मन में -0- 28 साँसों की डोर जन्म और मरण इसके छोर । 29 अँजुरी भर आशीष तुम्हें दे दूँ आज के दिन । 30 फैली चाँदनी धरा से नभ तक जैसे चादर ।

श्रेणी: हाइकु