Last modified on 16 अप्रैल 2012, at 18:24

इस जग में -हाइकु / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:24, 16 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }} [[Catego...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

61
इस जग में
ये बहिनों का प्यार
है उपहार ।
62
राखी का बन्ध
बहिनों से सम्बन्ध
न छूटे कभी ।
63
सरस मन
खुश घर -आँगन
आई बहिन ।
64
अश्रु-धार में
जो शिकायतें -गिले
धूल -से धुले ।
65
आज के दिन
बहिन है अधीर
 आया न बीर ।
66
खिले हैं मन
आज नेह का ऐसा
दौंगड़ा पड़ा ।
67
 छुआ जो शीश
भाई ने बहिन का
झरे आशीष ।
68
मन कुन्दन
कुसुमित कानन
हर बहन ।
69
गले मिले तो
सपना टूट गया
आँसू छलके
70
भीगी पलकें
छूती गोरा मुखड़ा
तेरी अलकें
 71
तुमको देखा
मिट गई मन से
चिन्ता की रेखा ।
 72
कुछ समझे हम
तुम्हें कुछ समझ लेंगे
लेने कई जनम
73
तुमको देखा -
मिट गई मन से
चिन्ता की रेखा ।
74
नेह की गली
मन में खिली अब
आस की कली
75
दीपक जले
उतरा धरा नभ
मिलता गले ।
76
अँधेरा डरा
देखकर उजाला
छुपता फिरा ।
77
रोशनी बसी-
मन नन्हें शिशु की
बिखरी हँसी
78
दिया जो जला
था डरा अँधियारा
उजाला खिला
79
ओस नहाई
शरद की जुन्हाई
है सकुचाई ।
80
नदी का तीर
हुआ निर्मल नीर
हर ली पीर ।
-0-