भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन बसन्त के / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 26 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह |संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन बसन्त के

राजा-रानी-से तुम दिन बसन्त के

आए हो हिम के दिन बीतते

दिन बसन्त के


पात पुराने पीले झरते हैं झर-झर कर

नई कोंपलों ने शृंगार किया है जी भर

फूल चन्द्रमा का झुक आया है धरती पर

अभी-अभी देखा मैंने वन को हर्ष भर


कलियाँ लेते फलते, फूलते

झुक-झुककर लहरों पर झूमते

आए हो हिम के दिन बीतते

दिन बसन्त के