सहमति का दौर / मनमोहन
टेढ़े रास्ते सीधे हो रहे हैं
टेढ़े लोग सीधे हो रहे हैं
कोई रूकावट नहीं
न कोई मोड़ है
कोई दो ओर नहीं
सब कहीं सुविधा है
इनकार की ज़रूरत क्या
थोड़ा-सा इसरार काफ़ी
क्योंकि कोई और नहीं
क्योंकि कोई गै़र नहीं
सब अपने हैं
कोई ऐसा इंतज़ार नहीं
जो हमें विकल कर दे
या तोड़ दे
किसी को कहीं से आना नहीं है
किसी को कहीं जाना नहीं है
बस प्रेम से रहना है
देखिए कमाल
एक राह से एक ही राह निकलती है
कोई दो राहें नहीं निकलतीं
एक बात से एक ही बात निकलती है
कोई दो बातें नहीं निकलतीं
अक्सर एक ही बात
अपने दो नमूने बना लेती है
जिससे बात रह जाती है
सच्चाई बस एक है
बाकी उदाहरण हैं
सहमति बुनियादी है
असहमति तो ऐसे ही है
जिससे सहमति घटित होती दिखाई दे
पहले ही जबाब इतना मौजूद है
कि सवाल पैदा ही नहीं होता
कैसी फुर्ती है
कि समस्या बनने के पहले ही
समाधान हाज़िर हो जाता है
जितना विवाद नहीं
उससे कहीं ज़्यादा बिचौलिए हैं
दलीलें, मिसालें, सुबूत
सब एक तरफ़ हैं
गवाह ,वकील, मुवक्किल,
मुंसिफ़ यहाँ तक कि मुद्दई
सब एक तरफ़