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संचार की नई अवस्था / मनमोहन
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यह लीजिए जनाब लम्बा चक्कर लगा कर
एक बार फिर हम लोग
उसी जगह आते हैं
जो रास्ते पहले छोड़ दिए थे
खाई बन कर हमारे समाने हैं
जितना एक-दूसरे को देखते हैं
उससे कहीं ज्य़ादा बीच की खाई को
बातें भी एक-दूसरे से कम
ख़ाई से ज्य़ादा करते हैं
जैसे अब खाई ही अकेली पुल बची है