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पुरूष-दृष्टि-दो / कमलेश्वर साहू

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घर का दरवाजा है पत्नी
खिड़कियां है
खिड़कियों और दरवाजों पर
हिलगा हुआ परदा है
जो घर के अंदर की
मामूली गैर-मामूली चीजों को
छोटी बड़ी समस्याओं को
असुविधाओं को, अव्यवस्थाओं को
लुकाती-छुपाती है
बचाती है लोगों से
लोगों की बुरी नजरों से
आंगन में खिला फूल है
डाल पर बैठी मैना
जिस पर नजरें मुग्ध होकर टिकी रहती हैं
वह तस्वीर है
केला आम अमरूद शहतूत का पेड़ है
आंगन में लगा हुआ तुलसी का पौधा है
जलता हुआ दीपक है पत्नी
हर आने वाली सुबह के स्वागत में
हर आने वाले मेहमान के सम्मान में
आंगन में बनी हुई
रंगोली है पत्नी !