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स्त्री-पुरूष (10) / कमलेश्वर साहू

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पुरूष ने कहा
मैंने ढेर सारे सपने बुने हैं
स्त्री बोली
लाओ
मैं उनमें रंग भर देती हूं
मगर ऐसा हुआ नहीं
पुरूष अपने सपनों को दबोचे बैठा रहा
स्त्री अपने रंगों को सहेजे
यदि ऐसा हो जाता
तो दुनिया कुछ और होती
दुनिया का रंग कुछ और होता !