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स्तब्ध हैं कोयल / बुद्धिनाथ मिश्र

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स्तब्ध हैं कोयल कि उनके स्वर

जन्मना कलरव नहीं होंगे ।

वक़्त अपना या पराया हो

शब्द ये उत्सव नहीं होंगे ।


गले लिपटा अधमरा यह साँप

नाम जिस पर है लिखा गणतंत्र

ढो सकेगा कब तलक यह देश

जबकि सब हैं सर्वतंत्र स्वतंत्र


इस अवध के भाग्य में राजा

अब कभी राघव नहीं होंगे ।


यह महाभारत अजब-सा है

कौरवों से लड़ रहे कौरव

द्रौपदी की खुली वेणी की

छाँह में छिप सो रहे पांडव


ब्रज वही है, द्वारका भी है

किन्तु अब केशव नहीं होंगे ।


जीतकर हारा हुआ यह देश

मांगता ले हाथ तम्बूरा

सुनो जनमेजय, तुम्हारा यज्ञ

नाग का शायद न हो पूरा


कोख में फिर धरा-पुत्री के

क्या कभी लव-कुश नहीं होंगे ?


जन्मना=जन्म से

जनमेजय का नागयज्ञ=सर्प के डँसने से मृत्यु होने की भविष्यवाणी सुनने के बाद जनमेजय द्वरा किया गया यज्ञ ।

धरा-पुत्री=सीता


(रचनाकाल:21.03.1999)